भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: '''योग गैर ईसाई है'''<br /> <br /> मेरे जाहिल देश!!<br /> सपेरों मदारियों के देश म...
'''योग गैर ईसाई है'''<br />
<br />
मेरे जाहिल देश!!<br />
सपेरों मदारियों के देश मेरे<br />
आज जी भर हँस लो,<br />
और ऐसे हँसना कि तुम्हारे ठहाके<br />
होते रहें प्रतिध्वनित<br />
फोड़ते रहें बहरों के कान<br />
डकैती के कोहीनूर पर इतराने वालों पर<br />
समय है फब्तियाँ कसने का..<br />.
<br />
पानी के छींटे मार बच्चों को सोते से जगाओ<br />
राम दुलारे-अल्ला रक्खा<br />
घर से निकलो, चौपाल सजाओ<br />
मसाले के सौदागर जो राजा हो गये थे<br />
फिर सभ्यता का शोर-शराबा, ढोल-बाजा हो गये थे<br />
दो-सौ साल के गुलामों, व्यंग्य की मुस्कुराहट<br />
तुम्हारे ओठों पर भली लगेगी<br />
और “भौजी” के गालों पर गड्ढे सजेंगे<br />
उन चौपट राजाओं की अंधेर नगरी की मोतियाबिन्द आँखों<br />
चमक उठो, बात ही एसी है..<br />
<br />
हँसना इस लिये जरूरी है<br />
कि तुम्हारी सोच, समझ और ज्ञान पर कंबल डाल कर<br />
जो ए.बी.सी.डी तुम्हें पढ़ायी गयी<br />
और तुम जेंटलमेन बन कर इतरा रहे हो<br />
भैय्या कालू राम!! वह ढोल फट गया है<br />
गौर से गोरी चमड़ी के श्रेष्ठ होने की सत्यता को देखो<br />
दीदे फाड़ देखो...<br />
एक दुपट्टा ले कर अपनी बहन के कंधे पर धर दोगे<br />
जिसके साथ मॉडर्न होने का दंभ भर कर<br />
रॉक-एन-रोल करना<br />
तुम्हारे प्यार करने का ईम्पोर्टेड तरीका है<br />
<br />
खीसें मत निपोड़ो<br />
गेलेलियो का ज्ञान नहीं मनोविज्ञान पढ़ो<br />
और न समझ आये तो<br />
सिलवर स्ट्रीट चर्च के बर्तानी पादरी<br />
साईमन फरार की बातें सुनो<br />
कि योग गैर-ईसाई है !!!!<br />
राम कहूँगा तो साम्प्रदायिक हो जायेगा<br />
पर दुहाई तो दुहाई है<br />
<br />
फादर साईमन महोदय<br />
आपने खोल दी आँखें हमारी<br />
हम तो मदारियों, सपेरों के इस देश को<br />
आपका चश्मा लगा कर जाहिल समझते थे<br />
चश्मा उतर गया है मान्यवर<br />
तुम्हारे चेहरे पर आँखें गड़ा कर<br />
जी खोल कर हँसना चाहता हूँ<br />
आओ मदारियो, सपेरो....<br />
<br />
मेरे जाहिल देश!!<br />
सपेरों मदारियों के देश मेरे<br />
आज जी भर हँस लो,<br />
और ऐसे हँसना कि तुम्हारे ठहाके<br />
होते रहें प्रतिध्वनित<br />
फोड़ते रहें बहरों के कान<br />
डकैती के कोहीनूर पर इतराने वालों पर<br />
समय है फब्तियाँ कसने का..<br />.
<br />
पानी के छींटे मार बच्चों को सोते से जगाओ<br />
राम दुलारे-अल्ला रक्खा<br />
घर से निकलो, चौपाल सजाओ<br />
मसाले के सौदागर जो राजा हो गये थे<br />
फिर सभ्यता का शोर-शराबा, ढोल-बाजा हो गये थे<br />
दो-सौ साल के गुलामों, व्यंग्य की मुस्कुराहट<br />
तुम्हारे ओठों पर भली लगेगी<br />
और “भौजी” के गालों पर गड्ढे सजेंगे<br />
उन चौपट राजाओं की अंधेर नगरी की मोतियाबिन्द आँखों<br />
चमक उठो, बात ही एसी है..<br />
<br />
हँसना इस लिये जरूरी है<br />
कि तुम्हारी सोच, समझ और ज्ञान पर कंबल डाल कर<br />
जो ए.बी.सी.डी तुम्हें पढ़ायी गयी<br />
और तुम जेंटलमेन बन कर इतरा रहे हो<br />
भैय्या कालू राम!! वह ढोल फट गया है<br />
गौर से गोरी चमड़ी के श्रेष्ठ होने की सत्यता को देखो<br />
दीदे फाड़ देखो...<br />
एक दुपट्टा ले कर अपनी बहन के कंधे पर धर दोगे<br />
जिसके साथ मॉडर्न होने का दंभ भर कर<br />
रॉक-एन-रोल करना<br />
तुम्हारे प्यार करने का ईम्पोर्टेड तरीका है<br />
<br />
खीसें मत निपोड़ो<br />
गेलेलियो का ज्ञान नहीं मनोविज्ञान पढ़ो<br />
और न समझ आये तो<br />
सिलवर स्ट्रीट चर्च के बर्तानी पादरी<br />
साईमन फरार की बातें सुनो<br />
कि योग गैर-ईसाई है !!!!<br />
राम कहूँगा तो साम्प्रदायिक हो जायेगा<br />
पर दुहाई तो दुहाई है<br />
<br />
फादर साईमन महोदय<br />
आपने खोल दी आँखें हमारी<br />
हम तो मदारियों, सपेरों के इस देश को<br />
आपका चश्मा लगा कर जाहिल समझते थे<br />
चश्मा उतर गया है मान्यवर<br />
तुम्हारे चेहरे पर आँखें गड़ा कर<br />
जी खोल कर हँसना चाहता हूँ<br />
आओ मदारियो, सपेरो....<br />