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'''निठारी {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<poem>वो चाकलेटजब नाखून भरे हाथ बन जाती होगीतो मासूम छौने सी, नन्ही सी, गुडिया सीछोटी सी बिल्ली के मासूम भूतों नें पूछाबच्चे सी बच्चीसहसा सहम कर, रो कर, दुबक करकहती तो होगी 'बुरे वाले अंकल''<br />मेरे पास है और भी एसी टॉफीमुझे दो ना माफी, जाने भी दो ना..मुझे छोड दो, मेरी गुडिया भी लो नातितली भी है, मोर का पंख भी हैसभी तुमको दूंगी, कभी फिर न लूंगीमुझे छोड दो, मुझको एसे न मारोये कपडे नये हैं, इन्हें मत उतारोमैं मम्मी से, पापा से सबसे कहूँगीमगर छोड दोगे तो चुप ही रहूंगी..
वो चाकलेट<br />क्या आसमा तब भी पत्थर ही होगाक्यों इस धरा के न टुकडे हुए फिर?पिशाचों नें जब नाखून भरे हाथ बन जाती होगी<br />उस गिलहरी को नोचातो मासूम छौने सी, नन्ही सी, गुडिया सी<br />क्यों शेष का फन न काँपा?छोटी सी बिल्ली न फूटे कहीं ज्वाल के बच्चे सी बच्ची<br />मुख भला क्यों?सहसा सहम करगर्दन के, रो करहाँथों के, दुबक पैरों के टुकडेनाले में जब वो बहा कर<br />हटा थाकहती तो होगी 'बुरे वाले अंकल'<br />ए नीली छतरी लगा कर खुदा बनमेरे पास बैठा है और भी एसी टॉफी<br />मुझे दो ना माफीतू, जाने तेरा कुछ भी दो ना..<br />घटा थामुझे छोड दो, तू मेरी गुडिया भी लो ना<br />तितली भी है, मोर का पंख भी है<br />सभी तुमको दूंगी, कभी फिर न लूंगी<br />मुझे छोड दो, मुझको एसे न मारो<br />दृष्टि में सबसे भिखारीदिया क्या धरा को ये कपडे नये हैं, इन्हें मत उतारो<br />मैं मम्मी से, पापा से सबसे कहूँगी<br />मगर छोड दोगे तो चुप ही रहूंगी..<br />तूनें 'निठारी'?
ये कैसी है दुनियाँ, कहाँ आ गये हम?कहाँ बढ गये हम, कि क्या आसमा तब भी पत्थर ही होगा<br />पा गये हम?क्यों इस धरा के टुकडे हुए फिर?<br />आशा की बातें करो कामचोरोंपिशाचों नें जब उस गिलहरी को नोचा<br />'लुक्क्ड', 'उचक्को', 'युवा', तुम पे थू हैतुम्ही से तो क्यों शेष का फन न काँपा?<br />उठती हर ओर बू हैन फूटे कहीं ज्वाल के मुख भला क्यों?<br />अरे 'कर्णधारो' मरो,गर्दन चुल्लुओं भर पानीं में डूबोवेलेंटाईनों केपहलू में दुबको, हाँथों केतरक्की करो तुमशरम को छुपा दो, पैरों के टुकडे<br />नाले बहनों को अमरीकी कपडे दिला दोबढो शान से, चाँद पर घर बनाओनहीं कोई तुमसे ये पूछेगा कायरकि चेहरे में जब वो बहा इतना सफेदा लगा कर हटा था<br />तो ए नीली छतरी लगा अपना ही चेहरा छुपा क्यों रहे होउठा कर खुदा बन<br />के बाईक 'पतुरिया' घुमाओबैठा है तू, तेरा कुछ भी घटा था<br />समाचार देखो तो चैनल बदल दोतू मेरी दृष्टि में सबसे भिखारी<br />मगर एक दिन पाँव के नीचे धरतीदिया गर साथ छोडेगी तो क्या धरा को करोगे?इतिहास पूछेगा तो क्या गडोगे?तुम्हारी ही पहचान है ये तूनें 'पिटारीउसी देश के हो है जिसमें निठारी'?<br />...
ये कैसी है दुनियाँ, कहाँ आ गये हम?<br />कहाँ बढ गये हम, कि क्या पा गये हम?<br />न आशा की बातें करो कामचोरों<br />'लुक्क्ड', 'उचक्को', 'युवा', तुम पे थू है<br />तुम्ही से तो उठती हर ओर बू है<br />अरे 'कर्णधारो' मरो,<br />चुल्लुओं भर पानीं में डूबो<br />वेलेंटाईनों के पहलू में दुबको,<br />तरक्की करो तुम<br />शरम को छुपा दो,<br />बहनों को अमरीकी कपडे दिला दो<br />बढो शान से, चाँद पर घर बनाओ<br />नहीं कोई तुमसे ये पूछेगा कायर<br />कि चेहरे में इतना सफेदा लगा कर<br />अपना ही चेहरा छुपा क्यों रहे हो<br />उठा कर के बाईक 'पतुरिया' घुमाओ<br />समाचार देखो तो चैनल बदल दो<br />मगर एक दिन पाँव के नीचे धरती<br />अगर साथ छोडेगी तो क्या करोगे?<br />इतिहास पूछेगा तो क्या गडोगे?<br />तुम्हारी ही पहचान है ये पिटारी<br />उसी देश के हो है जिसमें निठारी...<br /> भैया थे, पापा थे, नाना थे, चाचा थे<br />कुछ भी नहीं थे तो क्या कुछ नहीं थे<br />बदले हुए दौर में हर तरफ हम<br />पिसे हैं तो क्या आपको अजनबी थे?<br />नहीं सुन सके क्यों 'बचाओ' 'बचाओ'<br />निठारी के मासूम भूतों नें पूछा<br />अरे बेशरम कर्णधारों बताओ..<br /poem>
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