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'''आस्था -५'''<br />{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}तुमनें<br /poem>तुमनेबहते हुए पानी में<br />मेरा ही तो नाम लिखा था<br />और ठहर कर हथेलियों से भँवरें बना दीं<br />आस्थायें अबूझे शब्द हो गयी गई हैं<br />मिट नहीं सकती लेकिन..<br /> '''आस्था -६'''<br /> मेरे कलेजे को कुचल कर<br />तुम्हारे मासूम पैर ज़ख्मी तो नहीं हुए?<br />मेरे प्यार<br />मेरी आस्थायें सिसक उठी हैं<br />इतना भी यकीं न था तुम्हें<br />कह कर ही देखा होता कि मौत आये तुम्हें<br />कलेजा चीर कर<br />तुम्हें फूलों पर रख आता..<br /poem>
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