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'''पधारो म्हारे देस'''<br />{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह=}}{{KKCatKavita}}<br /poem>केसरिया बालमवा..<br />पधारो म्हारे देस...<br /><br />आदम ढूंढो, आदिम पाओ<br />रक्त पिपासु, प्यास बुझाओ<br />मेरी माँगें, तेरी माँगे<br />माँगखींचे इसकी उसकी टाँगे<br />टाँगमेरा परिचय, मेरी जाती<br />छलनी कर दो दूजी छाती<br />नेताजी का ले कर नारा<br />गुंडागर्दी धर्म हमारा<br />हमें रोकने की जुर्ररत जुर्रत में<br />खिंचवाने क्या केस<br />पधारो म्हारे देस..<br /><br />किसका ज्यादा चौडा ज़्यादा चौड़ा सीना<br />मैं गुज्जर हूँ, वो है मीणा<br />दोनों मिल कर आग लगायें<br />लगाएँरेलें रोकें बस सुलगायें<br />सुलगाएँकितना अपना भाईचारा<br />मिलकर हमने बाग उजाडा<br />बीन जला दो, धुन यह किसकी<br />भैंस उसी की लाठी जिसकी<br />मरे बिचारे आम दिहाडी<br />गोली के आदेस<br />पधारो म्हारे देस..<br /><br />ईंट -ईंट कर घर बनवाओ<br />जा कर उसमें आग लगाओ<br />और अगर एसा ऐसा कर पाओ<br />हिम्मत वालों वालो देश जलाओ<br />अपनी पीडा ही पीडा है<br />भीतर यह कैसा कीडा है<br />अपनी भी देखो परछाई<br />निश्चित डर जाओगे भाई<br />बारूदों में रेत बदल दी<br />इसी काज के क्लेस<br />पधारो म्हारे देस...<br /><br />जाग -जाग शैतान जाग रे<br />आग -आग हर ओर आग रे<br />जला देश परिवेश नाच रे<br />झूम -झूम आल्हे को बाँच रे<br />इंसानों की मौत हो गयी<br />गईसोच -सोच की सौत हो गयी<br />गईहोली रक्त चिता दीवाली<br />गुलशन में उल्लू हर डाली<br />हँसी सुनों, हैं सभी भेडिये<br />भेडिएइंसानों के भेस<br />पधारो म्हारे देस...<br /><br />केसरिया बालमवा.........!!!<br /poem>
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