Changes

{{KKCatKavita}}
<poem>
क्या करूं करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?क्या करूंकरूँ?
मैं दुखी जब-जब हुआ
किन्तु इस आभार का अब
हो उठा है बोझ भारी;
क्या करूं करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?क्या करूंकरूँ?
एक भी उच्छ्वास मेरा
सत्य को मूंदे रहेगी
शब्द की कब तक पिटारी?
क्या करूं करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?क्या करूंकरूँ?
कौन है जो दूसरों को
क्यों हमारे बीच धोखे
का रहे व्यापार जारी?
क्या करूं करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?क्या करूंकरूँ?
क्यों न हम लें मान, हम हैं
तुम दुखी हो तो सुखी मैं
विश्व का अभिशाप भारी!
क्या करूं करूँ संवेदना लेकर तुम्हारी?क्या करूंकरूँ?
</poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits