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Kavita Kosh से
इस तरह हृदय में जाय व्याप,
बन जाय हृदय होकर विशाल
मानव-दुख-मापक दंड़-माप;
जो जले मगर जिसकी ज्वाला
प्रज्जवलित करे ऐसा विरोध,
जो मानव के प्रति किए गए
अत्याचारों का करे शोध;
पर अगर किसी दुर्बलता सेयह ताप न अपना रख पाए,तो अपने बुझने से पहलेऔरों में आग लगा जाए;यह स्वस्थ आग, यह स्वस्थ जलनजीवन में सबको प्यारी हो,इसमें जल निर्मल होने कामानव-मानव अधिकारी हो!
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