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खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,<br>
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,<br>
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,<br>
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,<br><br>
सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में|,<br><br>
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,<br>
छिनी राजधानी दिल्ली की, लखनऊ छीना बातों-बात,<br>
कैद पेशवा था बिठुर बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,<br>उदैपुर, तंजौर, सतारा, करनाटक कर्नाटक की कौन बिसात?<br>जबकि जब कि सिंध, पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।<br><br>
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,<br>
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
रानी रोयीं रिनवासों रनिवासों में, बेगम ग़म से थीं बेज़ार,<br>
उनके गहने कपड़े बिकते थे कलकत्ते के बाज़ार,<br>
सरे आम नीलाम छापते थे अंग्रेज़ों के अखबार,<br>
'नागपूर नागपुर के ज़ेवर ले लो लखनऊ के लो नौलख हार'।<br><br>
यों परदे की इज़्ज़त परदेशी के हाथ बिकानी थी,<br>
यह स्वतंत्रता की चिनगारी अंतरतम से आई थी,<br>
झाँसी चेती, दिल्ली चेती, लखनऊ लपटें छाई थी,<br>
मेरठ, कानपूरकानपुर, पटना ने भारी धूम मचाई थी,<br><br>
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
इनकी गाथा छोड़, चले हम झाँसी के मैदानों में,<br>
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,<br>
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बड़ा बढ़ा जवानों में,<br>
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध असमानों में।<br><br>
विजयी रानी आगे चल दी, किया ग्वालियर पर अधिकार।<br><br>
अंग्रेज़ों के मित्र सिंधिया ने छोड़ी रजधानी राजधानी थी,<br>
बुंदेले हरबोलों के मुँह हमने सुनी कहानी थी,<br>
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
तो भी रानी मार काट कर चलती बनी सैन्य के पार,<br>
किन्तु सामने नाला आया, था वह संकट विषम अपार,<br>
घोड़ा अड़ा, नया घोड़ा था, इतने में आ गये अवारसवार,<br>
रानी एक, शत्रु बहुतेरे, होने लगे वार-पर-वार।<br><br>
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