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लेखिका: [[सुभद्राकुमारी चौहान]]{{KKGlobal}}[[Category:कविताएँ]]{{KKRachna[[Category:|रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान]] ~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*}}
सिंहासन हिल उठे राजवंशों ने भृकुटी तानी थी,<br>
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।।<br><br>
कान पु र कानपुर के नाना की, मुँहबोली बहन छबीली थी,<br>
लक्ष्मीबाई नाम, पिता की वह संतान अकेली थी,<br>
नाना के सँग पढ़ती थी वह, नाना के सँग खेली थी,<br>
बरछी , ढाल, कृपाण, कटारी उसकी यही सहेली थी।<br><br>
वीर शिवाजी की गाथायें उसको याद ज़बानी थी,<br>
हुई वीरता की वैभव के साथ सगाई झाँसी में,<br>
ब्याह हुआ रानी बन आई लक्ष्मीबाई झाँसी में,<br>
राजमहल में बजी बधाई खुशियाँ छाई झाँसी में,<br><br>सुघट बुंदेलों की विरुदावलि-सी वह आयी थी झांसी में|,<br><br>
चित्रा ने अर्जुन को पाया, शिव को मिली भवानी थी,<br>
कैद पेशवा था बिठूर में, हुआ नागपुर का भी घात,<br>
उदैपुर, तंजौर, सतारा,कर्नाटक की कौन बिसात?<br>
जब कि सिंध,पंजाब ब्रह्म पर अभी हुआ था वज्र-निपात।<br><br>
बंगाले, मद्रास आदि की भी तो वही कहानी थी,<br>
जहाँ खड़ी है लक्ष्मीबाई मर्द बनी मर्दानों में,<br>
लेफ्टिनेंट वाकर आ पहुँचा, आगे बढ़ा जवानों में,<br>
रानी ने तलवार खींच ली, हुया द्वन्द्ध द्वंद असमानों में।<br><br>
ज़ख्मी होकर वाकर भागा, उसे अजब हैरानी थी,<br>