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Kavita Kosh से
मेरा मंदिर था, प्रतिमा थी,
मन में पूजा की महिमा थी,
किंतु निरभ्र गगने से गिरकर वज्र गया कर सबका खडनखंडन!
गिरजे से घंटे की टन-टन!