भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
धूरि भरे अति शोभित श्याम जू, तैसी बनी सिर सुन्दर चोटी।

खेलत खात फिरैं अँगना, पग पैंजनिया कटि पीरी कछौटी।।

वा छवि को रसखान विलोकत, वारत काम कलानिधि कोटी

काग के भाग कहा कहिए हरि हाथ सों ले गयो माखन रोटी।।
Anonymous user