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|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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जय हो, हे संसार, तुम्‍हारी!
 
जहाँ झुके हम वहाँ तनों तुम,
 
जहाँ मिटे हम वहाँ बनो तुम,
 
तुम जीतो उस ठौर जहाँ पर हमने बाज़ी हारी!
 
जय हो, हे संसार, तुम्‍हारी!
 
मानव का सच हो सपना सब,
 
हमें चाहिए और न कुछ अब,
 
याद रहे हमको बस इतना- मानव जाति हमारी!
 
जय हो, हे संसार, तुम्‍हारी!
 
अनायास निकली यह वाणी,
 
यह निश्‍चय होगी कल्‍याणी,
 
जग को शुभाशीष देने के हम दुखिया अधिकारी!
 
जय हो, हे संसार, तुम्‍हारी!
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