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|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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मानव पर जगती का शासन,
संसृति को भी और किसी के प्रतिबंधो में रहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!
 
हम क्या हैं जगती के सर में!
जगती क्या, संसृति सागर में!
कि एक प्रबल धारा में हमको लघु तिनके-सा बहना होगा!
साथी, सब कुछ सहना होगा!
 
आ‌ओ, अपनी लघुता जानें,
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