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जय हो, हे संसार, तुम्हारीतम्हारी!
जहाँ झुके हम वहाँ तनों तनो तुम,
जहाँ मिटे हम वहाँ बनो तुम,
तुम जीतो उस ठौर जहाँ पर हमने बाज़ी हारी!
हमें चाहिए और न कुछ अब,
याद रहे हमको बस इतना- मानव जाति हमारी!
जय हो, हे संसार, तुम्हारीतम्हारी!
अनायास निकली यह वाणी,
यह निश्चय निश्चय होगी कल्याणीकल्याणी,
जग को शुभाशीष देने के हम दुखिया अधिकारी!
जय हो, हे संसार, तुम्हारीतम्हारी!
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