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|संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन
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क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?
 
यौवन के उजड़े प्रदेश के,
 
इस उर के ध्‍वंसावशेष के,
 
भग्‍न शिला-खंडों से क्‍या मैं फिर आशा की भीत उठाऊँ?
 
क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?
 
स्‍वप्‍नों के इस रंगमहल में,
 
हँसूँ निशा की चहल पहल में?
 या इस खंडहर की समाधि‍ पर बैठ रुदन को गीत बनाऊँ? 
क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?
 
इसमें करुण स्‍मृतियाँ सोईं,
 
इसमें मेरी निधियाँ सोईं,
 
इसका नाम-निशान मिटाऊँ या मैं इस पर दीप जलाऊँ?
 
क्‍या कंकड़-पत्‍थर चुन लाऊँ?
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