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पथ आंगन पर रखकर आई / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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पल्लव - पल्लव पर हरियाली फूटी, लहरी डाली-डाली,<br>
बोली कोयल, कलि की प्याली मधु भरकर तरु पर उफनाई। <br><br>
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