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|रचनाकार= सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
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भेद कुल खुल जाए वह सूरत हमारे दिल में है ।
 
देश को मिल जाए जो पूँजी तुम्हारी मिल में है ।।
 
हार होंगे हृदय के खुलकर तभी गाने नये,
 
हाथ में आ जायेगा, वह राज जो महफिल में है ।
 
तरस है ये देर से आँखे गड़ी श्रृंगार में,
 
और दिखलाई पड़ेगी जो गुराई तिल में है ।
 
पेड़ टूटेंगे, हिलेंगे, जोर से आँधी चली,
 
हाथ मत डालो, हटाओ पैर, बिच्छू बिल में है ।
 
ताक पर है नमक मिर्च लोग बिगड़े या बनें,
 
सीख क्या होगी पराई जब पसाई सिल में है ।
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