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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
हारता रहा मैं स्वार्थ-समर।<br>
शुचिते, पहनाकर चीनांशुक<br>
रख सका तुझे अत: दधिमुख।<br>
क्षीण का न छीना कभी अन्न,<br>
मैं लख न सका वे दृग विपन्न,;<br>
अपने आँसुओं अत: बिम्बित<br>
देखे हैं अपने ही मुख-चित।<br><br>
"यह हिन्दी का स्नेहोपहार,<br>
यह नहीं हार मेरी, भास्वर<br>
यह रत्नहार-लोकोत्तर वर।वर!" --<br>
अन्यथा, जहाँ है भाव शुद्ध<br>
साहित्य-कला-कौशल प्रबुद्ध,<br>
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