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{{KKRachna
|रचनाकार=सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
|संग्रह=अनामिका / सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"
}}
[[Category:लम्बी कविता]]
जागे जीवन-जीवन का रवि,<br>
लेकर-कर कल तूलिका कला,<br>
देखो क्या रंग रँग भरती विमला,<br>
वांछित उस किस लांछित छवि पर<br>
फेरती स्नेह कूची भर।<br><br>
अपने गौरव से झुका माथ,<br>
पुत्री भी, पिता-गेह में स्थिर,<br>
छोडने छोड़ने के प्रथम जीर्ण अजिर।<br>
आँसुओं सजल दृष्टि की छलक<br>
पूरी न हुई जो रही कलक<br><br>
 
प्राणों की प्राणों में दब कर<br>
कहती लघु-लघु उसाँस में भर;<br>
समझता हुआ मैं रहा देख,<br>
हटता हटती भी पथ पर दृष्टि टेक।<br><br> 
तू सवा साल की जब कोमल<br>
पहचान रही ज्ञान में चपल<br>
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