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|संग्रह=न दैन्यं न पलायनम् / अटल बिहारी वाजपेयी
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{{KKCatKavita}}<poem>अपने आदर्शों और विश्वासों <br> के लिए काम करते-करते,<br>मृत्यु का वरण करना<br>सदैव ही स्पृहणीय है।<br>किन्तु<br>वे लोग सचमुच धन्य हैं<br>जिन्हें लड़ाई के मैदान में,<br>आत्माहुति देने का<br>अवसर प्राप्त हुआ है।<br>शहीद की मौत मरने<br>का सौभाग्य<br>सब को नहीं मिला करता।<br>जब कोई शासक<br>सत्ता के मद में चूर होकर<br>या,<br>सत्ता हाथ से निकल जाने के भय से<br>भयभीत होकर<br>व्यक्तिगत स्वाधीनता और स्वाभिमान को<br>कुचल देने पर<br>आमादा हो जाता है,<br>तब<br>कारागृह ही स्वाधीनता के<br>
साधना पीठ बन जाते हैं।
</poem>
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