भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
|रचनाकार=अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
हैं जन्म लेते जगह में एक ही,
एक ही पौधा उन्हें है पालता
रात में उन पर चमकता चांद भी,
एक ही सी चांदनी है डालता ।
हैं जन्म लेते जगह में मेह उन पर है बरसता एक हीसा,<br>एक ही पौधा उन्हें है पालता<br>रात में सी उन पर चमकता चांद भी,<br>हवाएँ हैं बहीं एक पर सदा ही सी चांदनी यह दिखाता है डालता हमें, ढंग उनके एक से होते नहीं <br><br>
मेह उन पर है बरसता एक साछेदकर काँटा किसी की उंगलियाँ,<br>एक सी उन पर हवाएँ हैं बहीं<br>फाड़ देता है किसी का वर वसन प्यार-डूबी तितलियों का पर सदा ही यह दिखाता है हमेंकतर,<br>ढंग उनके एक से होते नहीं भँवर का है भेद देता श्याम तन <br><br>
छेदकर काँटा किसी की उंगलियाँफूल लेकर तितलियों को गोद में भँवर को अपना अनूठा रस पिला,<br>फाड़ देता है किसी का वर वसन<br>निज सुगन्धों और निराले ढंग से प्यार-डूबी तितलियों का पर कतर,<br>भँवर का है भेद सदा देता श्याम तन कली का जी खिला <br><br>
फूल लेकर तितलियों को गोद में<br>भँवर को अपना अनूठा रस पिला,<br>निज सुगन्धों और निराले ढंग से<br>है सदा देता कली का जी खिला ।<br><br> है खटकता एक सबकी आँख में<br>दूसरा है सोहता सुर शीश पर,<br>किस तरह कुल की बड़ाई काम दे<br>जो किसी में हो बड़प्पन की कसर । <br><br/poem>
Delete, KKSahayogi, Mover, Protect, Reupload, Uploader
19,393
edits