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{{KKCatKavita}}
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जब कड़ी मारें पड़ीं, दिल हिल गया
पर न कर चूँ भी, कभी पाया यहाँ;
मुक्ती की तब युक्ती से मिल खिल गया
भाव, जिसका चाव है छाया यहाँ।
जब कड़ी मारें पड़ींखेत में पड़ भाव की जड़ गड़ गयी, दिल हिल गया<br>पर न कर चूँ भीधीर ने दुख-नीर से सींचा सदा, कभी पाया यहाँ;<br>मुक्ती सफलता की तब युक्ती से मिल खिल गया<br>भावथी लता आशामयी, जिसका चाव है छाया यहाँ।<br><br>झूलते थे फूल-भावी सम्पदा।
खेत में पड़ भाव की जड़ गड़ गयीदीन का तो हीन ही यह वक्त है,<br>धीर ने दुखरंग करता भंग जो सुख-नीर से सींचा सदा,<br>संग का सफलता की थी लता आशामयी,<br>भेद कर छेद पाता रक्त है झूलते थे फूलराज के सुख-साज-सौरभ-भावी सम्पदा।<br><br>अंग का।
दीन का तो हीन काल की ही यह वक्त है,<br>चाल से मुरझा गये रंग करता भंग फूल, हूले शूल जो सुख-संग का<br>दुख मूल में भेद कर छेद पाता रक्त है<br>एक ही फल, किन्तु हम बल पा गये; राज के सुख-साज-सौरभ-अंग का।<br><br>प्राण है वह, त्राण सिन्धु अकूल में।
काल की ही चाल से मुरझा गये<br>मिष्ट है, पर इष्ट उनका है नहीं फूलशिष्ट पर न अभीष्ट जिनका नेक है, हूले शूल जो दुख मूल में<br>एक ही फलस्वाद का अपवाद कर भरते मही, किन्तु हम बल पा गये;<br>प्राण है पर सरस वह, त्राण सिन्धु अकूल में।<br><br>नीति - रस का एक है।
मिष्ट है, पर इष्ट उनका है नहीं<br>
शिष्ट पर न अभीष्ट जिनका नेक है,<br>
स्वाद का अपवाद कर भरते मही,<br>
पर सरस वह नीति - रस का एक है।<br><br>
''( कविता संग्रह, "परिमल" से )''
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