भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
|रचनाकार=सुमित्रानंदन पंत
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
क्या मेरी आत्मा का चिर-धन ?
मैं रहता नित उन्मन, उन्मन !
निज सुख से ही चिर चंचल-मन,<br>मैं हुँ परतिपल उन्मन, उन्मन ।<br><br>
:मैं प्रेमी उच्चाद्रशों का,<br>:संस्कृति के स्वर्गिक-स्पर्शो का,<br>:जीवन के हर्ष-विमर्शों का:<br><br>
लगता अपुर्ण मानव जीवन,<br>मैं इच्छा से उन्मन, उन्मन !<br><br>
:जग-जीवन में उल्लास मुझे,<br>:नव-आशा, नव अभिलाष मुझे,<br>:ईश्वर पर चिर विश्वास मुझे;<br><br>
चाहिए विश्व को नवजीवन,<br>मैं आकुल रे उन्मन, उन्मन । <br><br/poem>