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{{KkGlobal}}{{KK Rachna|KKRachna|रचनाकार=रमा द्विवेदी}} {{KKCatKavita}}<poem>तेरी राह में खड़े, हैं चाहो तो तुम बुलाओ। चाहो तो तुम पुकारो,चाहो तो न बुलाओ॥
तेरी राह में खड़े,हैं चाहो तो तुम बुलाओ। <br>चाहो तो तुम पुकारो,चाहो तो न बुलाओ॥ <br><br>तुमने बनाया दासी,तुमने बनाया वनवासी, <br>तुमने बनाया पत्थर,तुमने बनाया देवी।<br>अब और क्या बनें हम, चाहो तो तुम बताओ?<br>तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥<br><br> तेरे दिए गमों को पीते रहे हैं ऐसे<br>,मीरा ने हँसते-हँसते विष को पिया था जैसे।<br>अब और क्या सज़ा है, चाहो तो तुम सुनाओ?<br>तेरी राह में खड़े हैं चाहो तो तुम बुलाओ॥<br><br> कभी तुमने गले लगाया,कभी तुमने हाथ छुड़ाया,<br>कभी तुमने साथ निभाया,कभी तुमने स्वांग रचाया।<br>अब और क्या बचा है,चाहो तो तुम बताओ?<br>तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥<br><br> तेरे ही वास्ते हम, मिटते रहे हैं हरदम,<br>फिर भी वफ़ा न की तुमने,करते रहे जफ़ा तुम।<br>अब और क्या करोगे, चाहो तो तुम बताओ?<br>तेरी राह में खड़े हैं, चाहो तो तुम बताओ॥<br><br> इस युग से पूछते हैं,कब तक रहेंगे शापित,<br>हम खुद को ढूँढ़ते हैं,अपनों के बीच अब तक।<br>अब और न सहेंगे चाहो तो भूल जाओ।<br>तेरी राह में खड़े हैं,चाहो तो तुम बुलाओ॥<br><br/poem>
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