भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार = रसखान }}<poem>कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हम…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार = रसखान
}}<poem>कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हमको चहिहै।
निसि द्यौस रहे यह आस लगी, यह सौतिन सांसत को सहिहै।
जिन मोहि लियो मनमोहन को, 'रसखानि' सु क्यों न हमैं दहिहै।
मिलि आवो सबै कहुं भाग चलैं, अब तो ब्रज में बाँसुरी रहिहै।</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार = रसखान
}}<poem>कान्ह भये बस बाँसुरी के, अब कौन सखी हमको चहिहै।
निसि द्यौस रहे यह आस लगी, यह सौतिन सांसत को सहिहै।
जिन मोहि लियो मनमोहन को, 'रसखानि' सु क्यों न हमैं दहिहै।
मिलि आवो सबै कहुं भाग चलैं, अब तो ब्रज में बाँसुरी रहिहै।</poem>