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{{KKRachna
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
}} {{KKCatKavita}}<poem>पर्वत कहता शीश उठाकर,<br>तुम भी ऊँचे बन जाओ।<br>सागर कहता है लहराकर,<br>मन में गहराई लाओ।<br><br>
समझ रहे हो क्या कहती हैं<br>उठ उठ गिर गिर तरल तरंग<br>भर लो भर लो अपने दिल में<br>मीठी मीठी मृदुल उमंग!<br><br>
पृथ्वी कहती धैर्य न छोड़ो<br>कितना ही हो सिर पर भार,<br>नभ कहता है फैलो इतना<br>ढक लो तुम सारा संसार! <br><br/poem>
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