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मातृभूमि / सोहनलाल द्विवेदी

105 bytes removed, 04:32, 17 अक्टूबर 2009
{{KKRachna
|रचनाकार=सोहनलाल द्विवेदी
}} {{KKCatKavita}}<poem>ऊँचा खड़ा हिमालय<br>आकाश चूमता है,<br>नीचे चरण तले झुक,<br>नित सिंधु झूमता है।<br><br>
गंगा यमुन त्रिवेणी<br>नदियाँ लहर रही हैं,<br>जगमग छटा निराली<br>पग पग छहर रही है।<br><br>
वह पुण्य भूमि मेरी,<br>वह स्वर्ण भूमि मेरी।<br>वह जन्मभूमि मेरी<br>वह मातृभूमि मेरी।<br><br>
झरने अनेक झरते<br>जिसकी पहाड़ियों में,<br>चिड़ियाँ चहक रही हैं,<br>हो मस्त झाड़ियों में।<br><br>
अमराइयाँ घनी हैं<br>कोयल पुकारती है,<br>बहती मलय पवन है,<br>तन मन सँवारती है।<br><br>
वह धर्मभूमि मेरी,<br>वह कर्मभूमि मेरी।<br>वह जन्मभूमि मेरी<br>वह मातृभूमि मेरी।<br><br>
जन्मे जहाँ थे रघुपति,<br>जन्मी जहाँ थी सीता,<br>श्रीकृष्ण ने सुनाई,<br>वंशी पुनीत गीता।<br><br>
गौतम ने जन्म लेकर,<br>जिसका सुयश बढ़ाया,<br>जग को दया सिखाई,<br>जग को दिया दिखाया।<br><br>
वह युद्ध–भूमि मेरी,<br>वह बुद्ध–भूमि मेरी।<br>वह मातृभूमि मेरी,<br>वह जन्मभूमि मेरी। <br><br/poem>
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