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ऎसी प्रीति की बलि जाऊं / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]<poem>ऎसी प्रीति की बलि जाऊं।
सिंहासन तजि चले मिलन कौं, सुनत सुदामा नाउं।
कर जोरे हरि विप्र जानि कै, हित करि चरन पखारे।
अंकमाल दै मिले सुदामा, अर्धासन बैठारे।
अर्धांगी पूछति मोहन सौं, कैसे हितू तुम्हारे।
तन अति छीन मलीन देखियत, पाउं कहां तैं धारे।
संदीपन कैं हम अरु सुदामा, पढै एक चटसार।
सूर स्याम की कौन चलावै, भक्तनि कृपा अपार।</poem>
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