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{{KKRachna
|रचनाकार=सुभद्राकुमारी चौहान
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शैशव के सुन्दर प्रभात का
मैंने नव विकास देखा।
नहीं अशान्ति हृदय तक अपनी
भीषणता लाने पायी।।
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