भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }}<poem>बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न, कहूँ दरसैं…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
}}<poem>बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न, कहूँ दरसैं इहि छाक छईं।
निरखैं परखैं करखैं हरखैं उपजी अभिलाषनि लाख जईं।
घनआनँद ही उनए इनि मैं बहु भाँतिनि ये उन रंग रईं।
रसमूरति स्यामहिं देखत ही सजनी अँखियाँ रसरासि भईं॥ </poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=घनानंद
}}<poem>बरसैं तरसैं सरसैं अरसैं न, कहूँ दरसैं इहि छाक छईं।
निरखैं परखैं करखैं हरखैं उपजी अभिलाषनि लाख जईं।
घनआनँद ही उनए इनि मैं बहु भाँतिनि ये उन रंग रईं।
रसमूरति स्यामहिं देखत ही सजनी अँखियाँ रसरासि भईं॥ </poem>