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{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:रुबाई]]
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दुनिया की उन्हें लाज न ग़ैरत है सखी
उनका है मज़ाक़ मेरी आफ़त है सखी

छेड़ेंगे मुझे जान के सब के आगे
सच उनकी बहुत बुरी आदत है सखी
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