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:हाथ जोड़ मृत्यु रही खड़ी शास्ति मान कर।<br><br>
::::श्रृंग चढ जीवन के आर-पार हेरते-से<br>:::::योगलीन लेटे थे पितामह गंभीर-से।<br>::::देखा धर्मराज ने, विभा प्रसन्न फैल रही<br>:::::श्वेत शिरोरुह, शर-ग्रथित शरीर-से।<br>::::करते प्रणाम, छूते सिर से पवित्र पद,<br>:::::उँगली को धोते हुए लोचनों के नीर से,<br>::::"हाय पितामह, महाभारत विफल हुआ"<br>:::::चीख उठे धर्मराज व्याकुल, अधीर-से।<br><br>
"वीर-गति पाकर सुयोधन चला गया है,<br>