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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर }} [[Category:रुबाई]] <poem> मन था भी तो लगता…
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{{KKRachna
|रचनाकार=जाँ निसार अख़्तर
}}
[[Category:रुबाई]]
<poem>
मन था भी तो लगता था पराया है सखी
तन को तो समझती थी कि छाया है सकी
अब माँ जो बनी हूँ तो हुआ है महसूस
मैंने कहीं आज खुद को पाया है सखी
</poem>
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}}
[[Category:रुबाई]]
<poem>
मन था भी तो लगता था पराया है सखी
तन को तो समझती थी कि छाया है सकी
अब माँ जो बनी हूँ तो हुआ है महसूस
मैंने कहीं आज खुद को पाया है सखी
</poem>