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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग मारू
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ऊधो, मोहिं ब्रज बिसरत नाहीं।
 
बृंदावन गोकुल तन आवत सघन तृनन की छाहीं॥
 
प्रात समय माता जसुमति अरु नंद देखि सुख पावत।
 
माखन रोटी दह्यो सजायौ अति हित साथ खवावत॥
 
गोपी ग्वाल बाल संग खेलत सब दिन हंसत सिरात।
 
सूरदास, धनि धनि ब्रजबासी जिनसों हंसत ब्रजनाथ॥
</poem>
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