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भावार्थ :- `निज कर चरन पखारे,' अपने हाथ से मेरे पैर धोये। इस प्रसंग पर कवि
नरोत्तमदास का बड़ा ही सुंदर सवैया है :-
 
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पानी परात कौ हाथ छुयौ नहिं नैनन के जल सों पग धोये॥"
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`लीन्हें....मेले' सुदामा की पत्नी ने एक फटे पुराने चिथड़े में श्रीकृष्ण के लिए
पकड़कर वह खींच ही ली और खोलकर वे कच्चे चावल मुट्ठी भर-भर बड़े प्रेम से
चबाने लगे।
 
शब्दार्थ :- मिताई =मित्रता। कृपन =दीन, गरीब। कुचील = मैले कपड़े पहनने वाला।
कुदरसन =कुरूप। सब संकोच निवारे = निःसंकोच होकर। चीर = वस्त्र। मेले = डाल दिये
पूरब कथा = बाल्यकाल की बातें।
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