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बरसी थी अम्बर से?<br><br>
::अथवा अकस्मात् मिट्टी से<br>::फूटी थी यह ज्वाला?<br>::या मंत्रों के बल जनमी<br>::थी यह शिखा कराला?<br><br>
कुरुक्षेत्र के पुर्व नहीं क्या<br>
हृदय-हृदय में बलने?<br><br>
::शान्ति खोलकर खड्ग क्रान्ति का<br>::जब वर्जन करती है,<br>::तभी जान लो, किसी समर का<br>::वह सर्जन करती है।<br><br>
शान्ति नहीं तब तक, जब तक<br>
नहीं किसी को कम हो।<br><br>
::ऐसी शान्ति राज्य करती है<br>::तन पर नहीं, हृदय पर,<br>::नर के ऊँचे विश्वासों पर,<br>::श्रद्धा, भक्ति, प्रणय पर।<br><br>
न्याय शान्ति का प्रथम न्यास है,<br>
सुदृढ नहीं रह पाता।<br><br>
::कृत्रिम शान्ति सशंक आप<br>::अपने से ही डरती है,<br>::खड्ग छोड़ विश्वास किसी का<br>::कभी नहीं करती है।<br><br>
और जिन्हेँ इस शान्ति-व्यवस्था<br>
सार, सिद्धि दुर्लभ है।<br><br>
::पर, जिनकी अस्थियाँ चबाकर,<br>::शोणित पीकर तन का,<br>::जीती है यह शान्ति, दाह<br>::समझो कुछ उनके मन का।<br><br>
सत्व माँगने से न मिले,<br>
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