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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग केदारा
<poem>फिर फिर कहा सिखावत बात।<br>प्रात काल उठि देखत ऊधो, घर घर माखन खात॥<br>जाकी बात कहत हौ हम सों, सो है हम तैं दूरि।<br>इहं हैं निकट जसोदानन्दन प्रान-सजीवनि भूरि॥<br>बालक संग लियें दधि चोरत, खात खवावत डोलत।<br>सूर, सीस नीचैं कत नावत, अब नहिं बोलत॥<br><br/poem>
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