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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग रामकली
<poem>बदन मनोहर गात<br>सखी री कौन तुम्हारे जात।<br>राजिव नैन धनुष कर लीन्हे बदन मनोहर गात॥<br>लज्जित होहिं पुरबधू पूछैं अंग अंग मुसकात।<br>अति मृदु चरन पंथ बन बिहरत सुनियत अद्भुत बात॥<br>सुंदर तन सुकुमार दोउ जन सूर किरिन कुम्हलात।<br>देखि मनोहर तीनौं मूरति त्रिबिध ताप तन जात॥<br><br/poem>
इस पद में भक्तकवि सूरदास जी भगवान् राम की छवि का वर्णन कर रहे हैं। राम-लक्ष्मण, सीता जब वन से होकर जा रहे थे तब एक गांव में रुके। उस गांव की स्त्रियों ने सीताजी से पूछा कि सखी! इन दोनों सुंदर कुंवरों में तुम्हारे स्वामी कौन से हैं? तब सीताजी ने संकेत से बताया कि जिनके नेत्र कमलवत हैं तथा जिनका शरीर मनोहर है और धनुष धारण किए हैं, वही मेरे स्वामी हैं। फिर ग्रामीण नारियां आपस में बातें करने लगीं कि यह कैसी विचित्र बात है कि इतने सुंदर, सुकुमार कोमल चरणों से वन में विचरण कर रहे हैं। सूर्य की किरणों से सुंदर शरीर वाले यह सुकुमार कुम्हला जाएंगे। सूरदास कहते हैं कि राम, लक्ष्मण, सीता की मनोहर जोड़ी को देखकर ग्रामीण नारियों के त्रिविध ताप मिट गए।