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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग सोरठ
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मेरो कान्ह कमलदललोचन।
अब की बेर बहुरि फिरि आवहु, कहा लगे जिय सोचन॥
यह लालसा होति हिय मेरे, बैठी देखति रैहौं॥
गाइ चरावन कान्ह कुंवर सों भूलि न कबहूं कैहौं॥
करत अन्याय न कबहुं बरजिहौं, अरु माखन की चोरी।
अपने जियत नैन भरि देखौं, हरि हलधर की जोरी॥
एक बेर ह्वै जाहु यहां लौं, मेरे ललन कन्हैया।
चारि दिवसहीं पहुनई कीजौ, तलफति तेरी मैया॥
</poem>
भावार्थ :- `करत....चोरी,' शायद तुम इसलिए रूठकर मथुरा में जाकर बस गए हो कि मैंने