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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग सारंग
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मो परतिग्या रहै कि जाउ।
इत पारथ कोप्यौ है हम पै, उत भीषम भटराउ॥
रथ तै उतरि चक्र धरि कर प्रभु सुभटहिं सन्मुख आयौ।
ज्यों कंदर तें निकसि सिंह झुकि गजजुथनि पै धायौ॥
आय निकट श्रीनाथ बिचारी, परी तिलक पर दीठि।
सीतल भई चक्र की ज्वाला, हरि हंसि दीनी पीठि॥
"जय जय जय जनबत्सल स्वामी," सांतनु-सुत यौं भाखै।
"तुम बिनु ऐसो कौन दूसरो, जौं मेरो प्रन राखै॥"
"साधु साधु सुरसरी-सुवन तुम मैं प्रन लागि डराऊं।"
सूरदास, भक्त दोऊ दिसि, का पै चक्र चलाऊं॥
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