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|रचनाकार=सूरदास
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[[Category:पद]]
राग रामकली
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संदेसो दैवकी सों कहियौ।
 
`हौं तौ धाय तिहारे सुत की, मया करति नित रहियौ॥
 
जदपि टेव जानति तुम उनकी, तऊ मोहिं कहि आवे।
 
प्रातहिं उठत तुम्हारे कान्हहिं माखन-रोटी भावै॥
 
तेल उबटनों अरु तातो जल देखत हीं भजि जाते।
 
जोइ-जोइ मांगत सोइ-सोइ देती, क्रम-क्रम करिकैं न्हाते॥
 
सुर, पथिक सुनि, मोहिं रैनि-दिन बढ्यौ रहत उर सोच।
 
मेरो अलक लडैतो मोहन ह्वै है करत संकोच॥
</poem>
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