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है हरि नाम कौ आधार / सूरदास

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|रचनाकार=सूरदास
}}
[[Category:पद]]
राग केदारा
<poem>
है हरि नाम कौ आधार।
 
और इहिं कलिकाल नाहिंन रह्यौ बिधि-ब्यौहार॥
 
नारदादि सुकादि संकर कियौ यहै विचार।
 
सकल स्रुति दधि मथत पायौ इतौई घृत-सार॥
 
दसहुं दिसि गुन कर्म रोक्यौ मीन कों ज्यों जार।
 
सूर, हरि कौ भजन करतहिं गयौ मिटि भव-भार॥
</poem>
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