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भजन / सूरदास

482 bytes removed, 11:16, 24 अक्टूबर 2009
|रचनाकार=सूरदास
}}
१.
<poem>
.१.
देखे मैं छबी आज अति बिचित्र हरिकी ॥ध्रु०॥
 
आरुण चरण कुलिशकंज । चंदनसो करत रंग सूरदास जंघ जुगुली खंब कदली ।
 
कटी जोकी हरिकी ॥१॥
 
उदर मध्य रोमावली । भवर उठत सरिता चली । वत्सांकित हृदय भान ।
 
चोकि हिरनकी ॥२॥
 
दसनकुंद नासासुक । नयनमीन भवकार्मुक । केसरको तिलक भाल ।
 
शोभा मृगमदकी ॥३॥
 
सीस सोभे मयुरपिच्छ । लटकत है सुमन गुच्छ । सूरदास हृदय बसे ।
मूरत मोहनकी ॥४॥
मूरत मोहनकी ॥४॥
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२.
 
श्रीराधा मोहनजीको रूप निहारो ॥ध्रु०॥
 
छोटे भैया कृष्ण बडे बलदाऊं चंद्रवंश उजिआरो ॥श्री०॥१॥
 
मोर मुगुट मकराकृत कुंडल पितांबर पट बारो ॥श्री०॥२॥
 
हलधर गीरधर मदन मनोहर जशोमति नंद दुलारी ॥श्री०॥३॥
 
शंख चक्र गदा पद्म विराजे असुरन भंजन हारो ॥श्री०॥४॥
 
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे वोढे कामर कारो ॥श्री०॥५॥
 
निरमल जल जमुनाजीको किनो नागनाथ लीयो कारो ॥श्री०॥६॥
 
इंद्र कोप चढे व्रज उपर नखपर गीरवर धारो ॥श्री०॥७॥
 
कनक सिंहासन जदुवर बैठे कोटि भानु उजिआरो ॥श्री०॥८॥
 
माता जशोदा करत आरती बार बार बलिहारो ॥श्री०॥९॥
 
सूरदास हरिको रूप निहारे जीवन प्रान हमारे ॥श्री०॥१०॥
 
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३.
 
राधे कृष्ण कहो मेरे प्यारे भजो मेरे प्यारे जपो मेरे प्यारे ॥ध्रु०॥
 
भजो गोविंद गोपाळ राधे कृष्ण कहो मेरे ॥ प्यारे०॥१॥
 
कृष्णजीकी लाल लाल अखियां हो लाल अखियां ।
 
जैसी खिलीरे गुलाब ॥राधे०॥२॥
 
सिरपर मुगुट विराजे हो विराजे । बन्सी शोभे रसाल ॥राधे०॥३॥
 
पितांबर पटकुलवाली हो पटकुलवाली कंठे मोतियनकी माल ॥राधे०॥४॥
 
शुभ काने कुंडल झलके हो कुंडल झलके । तिलक शोभेरे ललाट ॥राधे०॥५॥
 
सूरदास चरण बलिहारी हो चरण बलिहारी । मै तो जनम जनम तिहारो दास ॥राधे०॥६॥
 
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४.
 
नंद दुवारे एक जोगी आयो शिंगी नाद बजायो ।
 
सीश जटा शशि वदन सोहाये अरुण नयन छबि छायो ॥ नंद ॥ध्रु०॥
 
रोवत खिजत कृष्ण सावरो रहत नही हुलरायो ।
 
लीयो उठाय गोद नंदरानी द्वारे जाय दिखायो ॥नंद०॥१॥
 
अलख अलख करी लीयो गोदमें चरण चुमि उर लायो ।
 
श्रवण लाग कछु मंत्र सुनायो हसी बालक कीलकायो ॥ नंद ॥२॥
 
चिरंजीवोसुत महरी तिहारो हो जोगी सुख पायो ।
 
सूरदास रमि चल्यो रावरो संकर नाम बतायो ॥ नंद॥३॥
 
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५.
 
देख देख एक बाला जोगी द्वारे मेरे आया हो ॥ध्रु०॥
 
पीतपीतांबर गंगा बिराजे अंग बिभूती लगाया हो । तीन नेत्र अरु तिलक चंद्रमा जोगी जटा बनाया हो ॥१॥
 
भिछा ले निकसी नंदरानी मोतीयन थाल भराया हो । ल्यो जोगी जाओ आसनपर मेरा लाल दराया हो ॥२॥
 
ना चईये तेरी माया हो अपनो गोपाल बताव नंदरानी । हम दरशनकु आया हो ॥३॥
 
बालकले निकसी नंदरानी जोगीयन दरसन पाया हो । दरसन पाया प्रेम बस नाचे मन मंगल दरसाया हो ॥४॥
 
देत आसीस चले आसनपर चिरंजीव तेरा जाया हो । सूरदास प्रभु सखा बिराजे आनंद मंगल गाया हो ॥५॥
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६.
बासरी बजाय आज रंगसो मुरारी । शिव समाधि भूलि गयी मुनि मनकी तारी ॥ बा०॥ध्रु०॥
 
बेद भनत ब्रह्मा भुले भूले ब्रह्मचरी । सुनतही आनंद भयो लगी है करारी ॥ बास०॥१॥
 
रंभा सब ताल चूकी भूमी नृत्य कारी । यमुना जल उलटी बहे सुधि ना सम्हारी ॥ बा०॥२॥
 
श्रीवृंदावन बन्सी बजी तीन लोक प्यारी । ग्वाल बाल मगन भयी व्रजकी सब नारी ॥ बा०॥३॥
 
सुंदर श्याम मोहन मुरती नटबर वपुधारी । सूरकिशोर मदन मोहन चरण कमल बलिहारी ॥ बास०॥४॥
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७.
 
जागो पीतम प्यारा लाल तुम जागो बन्सिवाला । तुमसे मेरो मन लाग रह्यो तुम जागो मुरलीवाला ॥ जा०॥ध्रु०॥
 
बनकी चिडीयां चौं चौं बोले पंछी करे पुकारा । रजनि बित और भोर भयो है गरगर खुल्या कमरा ॥१॥
 
गरगर गोपी दहि बिलोवे कंकणका ठिमकारा । दहिं दूधका भर्‍या कटोरा सावर गुडाया डारा ॥ जा०॥२॥
 
धेनु उठी बनमें चली संग नहीं गोवारा । ग्वाल बाल सब द्वारे ठाडे स्तुति करत अपारा ॥ जा०॥३॥
 
शिव सनकादिक और ब्रह्मादिक गुन गावे प्रभू तोरा । सूरदास बलिहार चरनपर चरन कमल चित मोरा ॥ जा०॥४॥
 
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८.
ऐसे भक्ति मोहे भावे उद्धवजी ऐसी भक्ति । सरवस त्याग मगन होय नाचे जनम करम गुन गावे ॥ उ०॥ध्रु०॥
 
कथनी कथे निरंतर मेरी चरन कमल चित लावे ॥ मुख मुरली नयन जलधारा करसे ताल बजावे ॥उ०॥१॥
 
जहां जहां चरन देत जन मेरो सकल तिरथ चली आवे । उनके पदरज अंग लगावे कोटी जनम सुख पावे ॥उ०॥२॥
 
उन मुरति मेरे हृदय बसत है मोरी सूरत लगावे । बलि बलि जाऊं श्रीमुख बानी सूरदास बलि जावे ॥उ०॥३॥
९.
 
ग्वाली ते मेरी गेंद चोराई ग्वालिनि तें मेरी गेंद चोराई । खेलत गेंद परी तोरे अंगना अंगिया बीच छिपाई ॥ध्रु०॥
 
काहेकी गेंद काहेकी धागा कौन हात बनाई फुलनकी गेंद । रेशमका धागा जशोमति हाथ बनाई ॥११॥
 
झुटे लाल झुट मति बोलो अंगिया तकत पराई । जो मेरी अंगियामें गेंद जो निकसे भूल जावो ठकुराई ॥ ग्या०॥२॥
 
हस हस बात करत राधे संग उतसें जशोदा आई । सूरदास प्रभु चतुर कनैया एक गये दो पाई ॥ ग्वा०॥३॥
 
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१०.
 
नेक चलो नंदरानी उहां लगी नेक चलो नंदारानी ॥ध्रु०॥
 
देखो आपने सुतकी करनी दूध मिलावत पानी ॥उ०॥१॥
 
हमरे शिरकी नयी चुनरिया ले गोरसमें सानी ॥उ०॥२॥
 
हमरे उनके करन बाद है हम देखावत जबानी ॥उ०॥३॥
 
तुमरे कुलकी ऐशी बतीया सो हमारे सब जानी ॥उ०॥४॥
 
पिता तुमारे कंस घर बांधे आप कहावत दानी ॥उ०॥५॥
 
यह व्रजको बसवो हम त्यागो आप रहो राजधानी ॥उ०॥६॥
 
सूरदास उखर उखरकी बरखा थोर जल उतरानी ॥उ०॥७॥
 
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११.
 
देखो माई हलधर गिरधर जोरी ॥ध्रु०॥
 
हलधर हल मुसल कलधारे गिरधर छत्र धरोरी ॥देखो०॥१॥
 
हलधर ओढे पित पितांबर गिरधर पीत पिछोरी ॥देखो०॥२॥
 
हलधर केहे मेरी कारी कामरी गीरधरने ली चोरी ॥देखो०॥३॥
 
सूरदास प्रभुकी छबि निरखे भाग बडे जीन कोरी ॥देखो०॥४॥
 
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१२.
 
नेननमें लागि रहै गोपाळ नेननमें ॥ध्रु०॥
 
मैं जमुना जल भरन जात रही भर लाई जंजाल ॥ने०॥१॥
 
रुनक झुनक पग नेपुर बाजे चाल चलत गजराज ॥ने०॥२॥
 
जमुनाके नीर तीर धेनु चरावे संग लखो लिये ग्वाल ॥ने०॥३॥
 
बिन देखे मोही कल न परत है निसदिन रहत बिहाल ॥ने०॥४॥
 
लोक लाज कुलकी मरजादा निपट भ्रमका जाल ॥ने०॥५॥
 
वृंदाबनमें रास रचो है सहस्त्र गोपि एक लाल ॥ने०॥६॥
 
मोर मुगुट पितांबर सोभे गले वैजयंती माल ॥ने०॥७॥
 
शंख चक्र गदा पद्म विराजे वांके नयन बिसाल ॥ने०॥८॥
 
सुरदास हरिको रूप निहारे चिरंजीव रहो नंद लाल ॥ने०॥९॥
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१३.
 
दरसन बिना तरसत मोरी अखियां ॥ध्रु०॥
 
तुमी पिया मोही छांड सीधारे फरकन लागी छतिया ॥द०॥१॥
 
बस्ति छाड उज्जड किनी व्याकुल भ‍ई सब सखियां ॥द०॥२॥
 
सूरदास कहे प्रभु तुमारे मिलनकूं ज्युजलंती मुख बतिया ॥द०॥३॥
 
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१४.
 
सावरे मोकु रंगमें बोरी बोरी सांवरे मोकुं रंगमें बोरी बोरी ॥ध्रु०॥
 
बहीयां पकर कर शीरकी गागरिया । छिन गागर ढोरी ।
 
रंगमें रस बस मोकूं किनी । डारी गुलालनकी झोरी । गावत लागे मुखसे होरी ॥सा०॥१॥
 
आयो अचानक मिले मंदिरमें । देखत नवल किशोरी ।
 
धरी भूजा मोकुं पकरी जीवनने बलजोरे । माला मोतियनकी तोरी ॥सा०॥२॥
 
तब मोरे जोर कछु न चालो । बात कठीन सुनाई ।
 
तबसे उनकु नेन दिखायो मत जानो मोकूं मोरी । जानु तोरे चितकी चोरी ॥सा०॥३॥
 
मरजादा हमेरी कछु न राखी कंचुबोकी कसतोरी ।
 
सूरदास प्रभु तुमारे मिलनकू मोकूं रंगमें बोरी । गईती मैं नंदजीकी पोरी ॥सा०॥४॥
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१५.
 
हमसे छल कीनो काना नेनवा लगायके ॥ध्रु०॥
 
जमुनाजलमें जीपें गेंद डारी कालि नागनाथ लाये । इंद्रको गुमान हर्यो गोवरधन धारके ॥ह०॥१॥
 
मोर मुगुट बांधे काली कामरी खांदे । जमुनाजीमें ठाडो काना बासरी बजायके ॥ह०॥२॥
 
देवकीको जायो काना आधिरेन गोकुल आयो । जशोदा रमायो काना माखन खिलायके ॥ह०॥३॥
 
गोपि सब त्याग दिनी कुबजा संग प्रीत कीनि । सूर कहे प्रभु दरुशन दीजे मोरी व्रजमें आयके ॥ह०॥४॥
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१६.
 
जमुनाके तीर बन्सरी बजावे कानो ॥ज०॥ध्रु०॥
 
बन्सीके नाद थंभ्यो जमुनाको नीर खग मृग धेनु मोहि कोकिला अनें किर ॥बं०॥१॥
 
सुरनर मुनि मोह्या रागसो गंभीर । धुन सुन मोहि गोपि भूली आंग चीर ॥बं०॥२॥
 
मारुत तो अचल भयो धरी रह्यो धीर । गौवनका बच्यां मोह्यां पीवत न खीर ॥बं०॥३॥
 
सूर कहे श्याम जादु कीन्ही हलधरके बीर । सबहीको मन मोह्या प्रभु सुख सरीर ॥ब०॥४॥
 
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१७.
 
मधुरीसी बेन बजायके । मेरो मन मोह्यो सांवरा ॥ध्रु०॥
 
मेरे आंगनमें बांसको बेडलो सिंचो मन चित्त लायके । अब तो बेरण भई बासरी मोहन मुखपर आयके ॥सां०॥१॥
 
मैं जल जमुना भरन जातरी मारग रोक्यो आयके । बनसीमें कछु आचरण गावे राधेको नाम सुनायके ॥सा०॥२॥
 
घुंघटका पट ओडे आवें सब सखियां सरमायके । कहां कहेली सहेली सासु नणंदी घर जायके ॥सां०॥३॥
 
सूरदास गोकुलकी महिमा कबलग कहूं बनायके । एक बेर मोहे दरशन दीजो कुंज गलिनमें आयके ॥सां०॥४॥
 
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१८.
 
काहू जोगीकी नजर लागी है मेरो कुंवर । कन्हिया रोवे ॥ध्रु०॥
 
घर घर हात दिखावे जशोदा दूध पीवे नहि सोवे । चारो डांडी सरल सुंदर ।
 
पलनेमें जु झुलावे ॥मे०॥१॥
 
मेरी गली तुम छिन मति आवो । अलख अलख मुख बोले ।
 
राई लवण उतारे यशोदा सुरप्रभूको सुवावे ॥मे०॥२॥
 
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१९.
 
शाम नृपती मुरली भई रानी ॥ध्रु०॥
 
बन ते ल्याय सुहागिनी किनी । और नारी उनको न सोहानी ॥१॥
 
कबहु अधर आलिंगन कबहु । बचन सुनन तनु दसा भुलानी ॥२॥
 
सुरदास प्रभू तुमारे सरनकु । प्रेम नेमसे मिलजानी ॥३॥
 
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२०.
 
मुरली कुंजनीनी कुंजनी बाजती ॥ध्रु०॥
 
सुनीरी सखी श्रवण दे अब तुजेही बिधि हरिमुख राजती ॥१॥
 
करपल्लव जब धरत सबैलै सप्त सूर निकल साजती ॥२॥
 
सूरदास यह सौती साल भई सबहीनके शीर गाजती ॥३॥
 
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२१.
 
तुमको कमलनयन कबी गलत ॥ध्रु०॥
 
बदन कमल उपमा यह साची ता गुनको प्रगटावत ॥१॥
 
सुंदर कर कमलनकी शोभा चरन कमल कहवावत ॥२॥
 
और अंग कही कहा बखाने इतनेहीको गुन गवावत ॥३॥
 
शाम मन अडत यह बानी बढ श्रवण सुनत सुख पवावत ।
 
सूरदास प्रभु ग्वाल संघाती जानी जाती जन वावत ॥४॥
 
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२२.
 
रसिक सीर भो हेरी लगावत गावत राधा राधा नाम ॥ध्रु०॥
 
कुंजभवन बैठे मनमोहन अली गोहन सोहन सुख तेरोई गुण ग्राम ॥१॥
 
श्रवण सुनत प्यारी पुलकित भई प्रफुल्लित तनु मनु रोम राम सुखराशी बाम ॥२॥
 
सूरदास प्रभु गिरीवर धरको चली मिलन गजराज गामिनी झनक रुनक बन धाम ॥३॥
 
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२३.
 
फुलनको महल फुलनकी सज्या फुले कुंजबिहारी । फुली राधा प्यारी ॥ध्रु०॥
 
फुलेवे दंपती नवल मनन फुले फले करे केली न्यारी ॥१॥
 
फुलीलता वेली विविधा सुमन गन फुले आवन दोऊं है सुखकारी ॥२॥
 
सूरदास प्रभु प्यारपर बारत फुले फलचंपक बेली नेवारी ॥३॥
 
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२४.
 
कायकूं बहार परी । मुरलीया ॥ कायकू ब०॥ध्रु०॥
 
जेलो तेरी ज्यानी पग पछानी । आई बनकी लकरी मुरलिया ॥ कायकु ब०॥१॥
 
घडी एक करपर घडी एक मुखपर । एक अधर धरी मुरलिया ॥ कायकु ब०॥२॥
 
कनक बासकी मंगावूं लकरियां । छिलके गोल करी मुरलिया ॥ कायकु ब०॥३॥
 
सूरदासकी बाकी मुरलिये । संतन से सुधरी । मुरलिया काय०॥४॥
 
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२५.
 
सुदामजीको देखत श्याम हसे सुदामजीको देखत० ॥ध्रु०॥
 
हम तुम मित्र है बालपनके । अब तुम दूर बसे ॥ सुदामजी ॥१॥
 
फाटीरे धोती टुटी पगडीयां । चालत पाव घसे ॥ सुदा०॥२॥
 
भाभिजीने कुछ भेट पठाई । पोवे तीन पैसे ॥ सुदा०॥३॥
सूरदास प्रभु तुम्हारे मिलनसे । कंचन मेल बसे ॥ सुदामजी०॥४॥
सूरदास प्रभु तुम्हारे मिलनसे । कंचन मेल बसे ॥ सुदामजी०॥४॥
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२६.
 
महाराज भवानी ब्रह्म भुवनकी रानी ॥ध्रु०॥
 
आगे शंकर तांडव करत है । भाव करत शुलपानी ॥ महा०॥१॥
 
सुरनर गंधर्वकी भिड भई है । आगे खडा दंडपानी ॥ महा०॥२॥
 
सुरदास प्रभु पल पल निरखत । भक्तवत्सल जगदानी ॥ महा०॥३॥
 
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२७.
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