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इतनी पी जाओ / निदा फ़ाज़ली

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<poem>
इतनी पी जाओ
कि कमरे की सियह ख़ामोशी
इससे पहले कि कोई बात करे
तेज नोकीले सवालात करे
इतनी पी जाओ
कि दीवारों के बेरंग निशान
इससे पहले कि
कोई रूप भरें
माँ बहन भाई की तस्वीर करें
मुल्क तक़्सीम करें
इससे पहलें कि उठें दीवारें
खून से माँग भरें तलवारें
यूँ गिरो टूट के बिस्तर पे अँधेरा खो जाए
जब खुले आँख सवेरा हो जाए
इतनी पी जाओ!
</poem>