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एक ही ग़म / निदा फ़ाज़ली

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<poem>
अगर कब्रिस्तान में
अलग-अलग
कत्बे न हों
तो हर कब्र में
एक ही ग़म सोया हुआ होता है

-किसी माँ का बेटा
किसी भाई की बहन
किसी आशिक की महबूबा

तुम-
किसी कब्र पर भी
फ़ातिहा पढ़ के चले आओ
</poem>