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|रचनाकार=नागार्जुन
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दूधिया निगाहों में
फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर
कुसुम-कोमल मन में
गुट्ठल घट्ठोंवाले कुलिश-कठोर पैर
दे रहे थे गति
रबड़-विहीन ठूंठ ठूँठ पैडलों को
चला रहे थे
एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र
कर रहे थे मात त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को
नाप रहे थे धरती का अनहद फासला
घण्टों के हिसाब से ढोये जा रहे थे !
देर तक टकरायेटकराएउस दिन इन आंखों आँखों से वे पैर भूल नहीं पाऊंगा फटी बिवाइयांबिवाइयाँखुब गयीं गईं दूधिया निगाहों में धंस गयीं धँस गईं कुसुम-कोमल मन में
''१९६१ में लिखी गई''
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