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खुरदरे पैर / नागार्जुन

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|रचनाकार=नागार्जुन
}}
खुब गये {{KKCatKavita‎}}<poem>खुब गए
दूधिया निगाहों में
 
फटी बिवाइयोंवाले खुरदरे पैर
 धंस गयेधँस गए
कुसुम-कोमल मन में
 
गुट्ठल घट्ठोंवाले कुलिश-कठोर पैर
 
दे रहे थे गति
 रबड़-विहीन ठूंठ ठूँठ पैडलों को 
चला रहे थे
 
एक नहीं, दो नहीं, तीन-तीन चक्र
 
कर रहे थे मात त्रिविक्रम वामन के पुराने पैरों को
 
नाप रहे थे धरती का अनहद फासला
 
घण्टों के हिसाब से ढोये जा रहे थे !
  देर तक टकरायेटकराएउस दिन इन आंखों आँखों से वे पैर भूल नहीं पाऊंगा फटी बिवाइयांबिवाइयाँखुब गयीं गईं दूधिया निगाहों में धंस गयीं धँस गईं कुसुम-कोमल मन में
''१९६१ में लिखी गई''
</poem>
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