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{{KKRachna
|रचनाकार=धर्मवीर भारती
}} <poem>क्या यह अंधेरा ही एक मात्र सत्य है?
प्रश्न यह मैंने बार-बार दोहराया है!
उत्तर में कोई कुछ नहीं बोला!
उत्तर में, ओ सूर्या!
तुमको हर बार मैंने अपने
कुछ और निकट, और निकट पाया है!</poem>
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}} <poem>क्या यह अंधेरा ही एक मात्र सत्य है?
प्रश्न यह मैंने बार-बार दोहराया है!
उत्तर में कोई कुछ नहीं बोला!
उत्तर में, ओ सूर्या!
तुमको हर बार मैंने अपने
कुछ और निकट, और निकट पाया है!</poem>