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लाज न आवत दास कहावत / तुलसीदास

25 bytes added, 18:12, 26 अक्टूबर 2009
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|रचनाकार=तुलसीदास
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लाज न आवत दास कहावत।
सो आचरन-बिसारि सोच तजि जो हरि तुम कहँ भावत॥१॥
नाहिन और ठौर मो कहॅं, तातें हठि नातो लावत।
राखु सरन उदार-चूड़ामनि, तुलसिदास गुन गावत॥६॥
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