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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
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<poem>वो जो तड़प भी नहीं पाते हैं
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है,
तड़प कर जिनमें सह लेने का साहस आ जाता हो,
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है....
मेरी साँस लेती हुई लाश से पूछो
कि तड़पन की शिकन को दाँतों से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
फ़िर एक गहरी खामोश मौत मर जाना
कैसा होता है..
२८.०५.१९९७</poem>
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|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
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<poem>वो जो तड़प भी नहीं पाते हैं
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है,
तड़प कर जिनमें सह लेने का साहस आ जाता हो,
उनसे क्या पूछते हो मौत क्या है....
मेरी साँस लेती हुई लाश से पूछो
कि तड़पन की शिकन को दाँतों से दाब कर
मुस्कुरा कर
यह कह देना "जहाँ रहो खुश रहो"
फ़िर एक गहरी खामोश मौत मर जाना
कैसा होता है..
२८.०५.१९९७</poem>