भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>ज़िन्दगी न…
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>ज़िन्दगी ने बेहद खामोशी से कहा
नहीं, तुम्हें पूरा हक था कि मेरे स्वप्न देख सको,
लेकिन मैं पंछी हूँ, नदी हूँ और हवा हूँ
मैंने अपनी हथेली बढ़ा कर
चाँद छू लेना चाहा,
आसमान फुनगी पर जा बैठा और हँस कर बोला..
फ़िर कोशिश कर जनमजले
२८.०५.१९९७</poem>
{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>ज़िन्दगी ने बेहद खामोशी से कहा
नहीं, तुम्हें पूरा हक था कि मेरे स्वप्न देख सको,
लेकिन मैं पंछी हूँ, नदी हूँ और हवा हूँ
मैंने अपनी हथेली बढ़ा कर
चाँद छू लेना चाहा,
आसमान फुनगी पर जा बैठा और हँस कर बोला..
फ़िर कोशिश कर जनमजले
२८.०५.१९९७</poem>