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नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>मैं अपने सब…
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{{KKRachna
|रचनाकार=राजीव रंजन प्रसाद
|संग्रह=
}}
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<poem>मैं अपने सब्र की शरारत से हैरां हूँ
इतना बड़ा पत्थर कलेजे पर ढो लाया
और अब टूटे हुए कलेजे पर
टूटे हुए खिलौने सा रूठता है..
बच्चों-सा
७.१२.१९९५
</poem>
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<poem>मैं अपने सब्र की शरारत से हैरां हूँ
इतना बड़ा पत्थर कलेजे पर ढो लाया
और अब टूटे हुए कलेजे पर
टूटे हुए खिलौने सा रूठता है..
बच्चों-सा
७.१२.१९९५
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